भक्त कर्मा माता मंदिर बाबा कुटी आश्रम फिंगेश्वर (baba kuti ashram fingeshwar)




साहू समाज परीक्षेत्र बोरसी के सर्वसम्मति से माण्डव्य ऋषि आश्रम पर ,भक्त कर्मा माता की भव्य मंदिर बनाया गया है । यह मंदिर इक्कीसवीं सदी के अठारहवें साल मे स्थापित किया गया है.


माण्डव्य ऋषि आश्रम का प्रचलित नाम बाब कुटी आश्रम है यह आश्रम छत्तीसगढ़ जिला गरियाबंद के वि.खंड फिंगेश्वर से तकरीबन एक किलोमीटर के दुरी पर स्थित हैं ।


भक्त कर्मा माता तेली जाती का आराध्य देवी है । साहू समाज कर्मा माता के पुजा आरती करके ही सामाजिक कार्य प्रणाली सुरू करते हैं । कर्मा माता की कहानी बहुत ही धार्मिक है । मान्यता है कि कर्मा माता मीरा की तरह कृष्ण भगवान के भक्त थी ।

कर्मा माता की जीवन गाथा -

माँ कर्मा बाई का जन्म उत्तर प्रदेश के झाँसी नगर मे  चैत्र कृष्ण पक्ष को सुप्रसिद्ध तेल व्यापारी श्री राम साहू के घर हुआ था । तेल व्यापारी राम साहू के दो पुत्री थी कर्मा बाई और धर्मा बाई , समय के अनुसार कर्मा बाई की विवाह मध्यप्रदेश के जिला शिवपुरी की तहसील मुख्यालय नरवर  के निवासी पा जी साहू के साथ  हुआ था ।

कर्मा बाई का पति तेल के व्यापार करते थे । माॅ कर्मा निरन्तर बाल कृष्ण के भक्ति मे रमा रहता था । क्योंकि माँ कर्मा के पिता बहुत ही भक्ति भाव वाले थे  । तो इन्हीं के संस्कार कर्मा माता को मीला था । एक दिन अचानक कर्मा बाई के पति का अस्वस्थता के कारण निधन हो गया ।


 पति के चिता के सांथ सति होने का संकल्प कर लिया तभी आकाशवाणी  हुई  । कि यह ठीक नहीं है , बेटी तुम्हारे गर्भ में बच्चा पल रहा है । तुम समय का इंतजार करो मैं तुम्हें जगन्नाथ पूरी में दर्शन दूंगा और समय के चलते गर्भ मे पल रहे बच्चे का जन्म भी हो गया ।

आकाशवाणी से कहे गए शब्द पर कर्मा बाई गध्यान मन लगाते थे कि कब मेरे प्रभु मुझे दर्शन देंगे और इस तरह सोचते सोचते जगन्नाथ पूरी के लिए निकल गए थक हार कर रास्ते मे बेहोश हो गई जब होश आए तो वह जगन्नाथ पूरी मे थे ।

घर से बानाकर लाई गयी खिचड़ी भगवान को भोग लगाने के लिए मंदिर की सिड़ही चड़ने लगी जैसे ही सिड़ही पूर्ण की मंदिर के पुजारी लोग कर्मा माता पर भड़क गए तब कर्मा माता बोली पुजारी जी मैं भगवान को खिचड़ी का भोग लगाना चाहती हूँ ।

गुस्सा से आग बबुल पंडित जी ने कर्मा माता को सिड़ही से निचे धकेल दी कि भगवान तुम्हारे हाथ खिचड़ी खाऐंगे भाग यहाँ से पगली, तब कर्मा माता बहुत ही पीड़ा से कहने लगी वाह प्रभु क्या तुम पंडित पुजारियों के कैद में हो । मैं भी यहां से तब तक नहीं जाऊँगा जब तक तुम खूद मेरा बनाया खिचड़ी नहीं खा लो गे भले ही मेरा प्राण क्यों न चला जाये


अपार श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न भगवान श्री कृष्ण अपना बालकृष्ण रूप धारण कर कर्मा माता की गोद मे बैठकर माता के हाथों से खिचड़ी खाया । तब से आज तक जगन्नाथ पूरी मे खिचड़ी का भोग लगता है ।



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