शीतला माता मन्दिर बिजली " फिंगेश्वर ''




ये है गाँव की कुल देवी शीतला माता की मंदिर । यहां रोज प्रातः कालीन  ब्रह्म मुहूर्त पांच बजे और शाम 7 बजे पुजा हो जाते हैं ।


यहां हर साल गाँव की सुख शांति के लिए नवरात्रि में मां के दरबार मे ज्योत जलाते है । मान्यता है कि माँ शीतला शांति की देवी  है  । इसलिए यहाँ पंडित द्वारा हल्दी मिश्रीत ठंडा पानी दिया जाता है जिसे ठंडई कहते है । उस ठंडई पानी को नीम के पत्तो से शरीर पर छीटा मारने से शरीर को शीतलता मीलती है । माँ शीतला गाँव की प्रथम पूजनीय देवी है ।शीतला माता और गाँव की कहानी - bijli fingeshwar

यह कथा ऐतिहासिक है | एक दिन माँ शीतला धरती लोक पर घुमने के लिए भारत देश के राजस्थान को चुना और राजस्थान के एक गाँव में घुमने लगी तभी एक औरत ने चांवल के उबले हुए पानी को गली में फेक रही थी  ।


परंतु वह उबला हुआ पानी माता पर जा पड़ी जिससे माता की शरीर में छाले, फोड़े  पड़ गए और तो और वैसे भी राजस्थान का जलवायु गर्म थे |


तो माँ को बहुत पीड़ा हो रही थी । लेकिन उस गाँव में एक कुम्हारन के छोड़ किसी ने शीतला माता की मदद नहीं करी । उस कुम्हारन ने शीतला माता को अपने घर ले गया और माता के शरीर में खूब ठंडा पानी डाला जिससे शीतला माता को शांति मिली ।


कुम्हारन ने शीतला माता को खाने के लिए रात की बनी हुइ राबड़ी को दही के साथ दिया जब बुड़ही माई ने ठंडी जुवार के आटे कि राबड़ी  और दही खाया तो उसके शरीर को पूर्ण ठंडक मिली |


तब बुड़ही माई कुम्हारन के निःस्वार्थ  भक्ति भाव से प्रसन्न होकर प्रगट हो गई | और बोली बेटी मैं तुम्हारे निःस्वार्थ भक्ति भाव से प्रसन्न हुं । अब तुझे जो भी चाहिए मुझसे वरदान मांग ले ।


माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि मैं गरीब इस  माता को कहाँ बिठाऊ मेरे घर मे न चौकी और ना कोई आसन , तब माता बोली बेटी मैं तुम्हारे घर पर खड़े इस गदहे पर बैठ जाति हुं । तब से गदहा शीतला माता की सवारी बन गया ।

अब कुम्हारन ने हाथ जोड़कर कहा है माता मेरी इच्छा है कि आप इसी गाँव में स्थापित होकर यही रहो और माता उस कुम्हारन के गरीबी दरिद्रता को मुक्त करके अपनी प्रतिमा छोड़कर अंतरध्यान हो गए |



शीतला माता के नाम का मर्म -

शीतला अर्थात शीतलता , ठंडक्ता , शांति


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