Kuleshwar Mahadev | Rajim Chhattisgarh कुल को तारने वाले कुलेश्वर महादेव

   Kuleshwar Mahadev Mandir

छत्तीसगढ जिला- रायपुर के राजिम  नगरी त्रिवेणी संगम मे त्रेता युग से खड़ा यह कुलेश्वर महादेव मंदिर आज भी वैसा का वैसा ही है ।

जलधारा के बीचों-बीच कुलेश्वर मंदिर प्राचीन काल की इंजीनियरिंग का ज्वलंत प्रमाण है. बरसात के दिनों में बाढ़ का पानी कई-कई दिनों तक मंदिर को डुबाए रखता है.


ऐतिहासिक मान्यता 

मान्यता है कि जंहा मंदिर है वहां राम वनवास के दौरान माता सीता ने रेत का शिवलिंग बनाकर पुजा अर्चना की थी तब रेत का शिवलिंग पत्थर के शिवलिंग का स्वरूप ले लिया.

यहां पर भारी मात्रा मे देश विदेश से भक्त बाबा के दरबार मे आते हैं यहाँ पर सबसे ज्यादा भीड़ महाशिवरात्री को देखने को मिलती हैं । कहते है न कि बहुत ही सरल और सहज है हमारे महादेव जो कम से कम भक्ति मे प्रसन्न हो जाते हैं .
कुलेश्वर मंदिर के आस पास कई और ऐतिहासिक मंदिर है  जिसके दर्शन के लिए लोग बहुत दुर दुर से आते हैं ।
यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा मे कुंभ मेला रखा जाता है जिसमें धर्म गुरु साधु संत बड़ी संख्या मे शामिल होते हैं और सुबह शाम त्रिवेणी संगम गंगा आरती करते हैं ।  यह मेला 15 दिनों का रहता है जो दो जगह बटा हुआ होता है  ।


पहला नदियाँ मेला और दुसरा बस स्टेशन मे मीना बाजार । कुलेश्वर मंदिर राजिम, छत्तीसगढ़ का धर्म नगरी हैं लोग इस राजिम नगरी कुलेश्वर मंदिर मे मुंडन कार्य पुजा कराते हैं । इस कुलेश्वर मंदिर मे  पीपल का झाड़ भी हैं जो बहुत विशाल हैं । 



त्रिवेणी संगम पर खड़ा यह कुलेश्वर महादेव छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र  45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।


शीतला माता मन्दिर बिजली " फिंगेश्वर ''




ये है गाँव की कुल देवी शीतला माता की मंदिर । यहां रोज प्रातः कालीन  ब्रह्म मुहूर्त पांच बजे और शाम 7 बजे पुजा हो जाते हैं ।


यहां हर साल गाँव की सुख शांति के लिए नवरात्रि में मां के दरबार मे ज्योत जलाते है । मान्यता है कि माँ शीतला शांति की देवी  है  । इसलिए यहाँ पंडित द्वारा हल्दी मिश्रीत ठंडा पानी दिया जाता है जिसे ठंडई कहते है । उस ठंडई पानी को नीम के पत्तो से शरीर पर छीटा मारने से शरीर को शीतलता मीलती है । माँ शीतला गाँव की प्रथम पूजनीय देवी है ।शीतला माता और गाँव की कहानी - bijli fingeshwar

यह कथा ऐतिहासिक है | एक दिन माँ शीतला धरती लोक पर घुमने के लिए भारत देश के राजस्थान को चुना और राजस्थान के एक गाँव में घुमने लगी तभी एक औरत ने चांवल के उबले हुए पानी को गली में फेक रही थी  ।


परंतु वह उबला हुआ पानी माता पर जा पड़ी जिससे माता की शरीर में छाले, फोड़े  पड़ गए और तो और वैसे भी राजस्थान का जलवायु गर्म थे |


तो माँ को बहुत पीड़ा हो रही थी । लेकिन उस गाँव में एक कुम्हारन के छोड़ किसी ने शीतला माता की मदद नहीं करी । उस कुम्हारन ने शीतला माता को अपने घर ले गया और माता के शरीर में खूब ठंडा पानी डाला जिससे शीतला माता को शांति मिली ।


कुम्हारन ने शीतला माता को खाने के लिए रात की बनी हुइ राबड़ी को दही के साथ दिया जब बुड़ही माई ने ठंडी जुवार के आटे कि राबड़ी  और दही खाया तो उसके शरीर को पूर्ण ठंडक मिली |


तब बुड़ही माई कुम्हारन के निःस्वार्थ  भक्ति भाव से प्रसन्न होकर प्रगट हो गई | और बोली बेटी मैं तुम्हारे निःस्वार्थ भक्ति भाव से प्रसन्न हुं । अब तुझे जो भी चाहिए मुझसे वरदान मांग ले ।


माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि मैं गरीब इस  माता को कहाँ बिठाऊ मेरे घर मे न चौकी और ना कोई आसन , तब माता बोली बेटी मैं तुम्हारे घर पर खड़े इस गदहे पर बैठ जाति हुं । तब से गदहा शीतला माता की सवारी बन गया ।

अब कुम्हारन ने हाथ जोड़कर कहा है माता मेरी इच्छा है कि आप इसी गाँव में स्थापित होकर यही रहो और माता उस कुम्हारन के गरीबी दरिद्रता को मुक्त करके अपनी प्रतिमा छोड़कर अंतरध्यान हो गए |



शीतला माता के नाम का मर्म -

शीतला अर्थात शीतलता , ठंडक्ता , शांति


Google map

बिजली गाँव का नाम बिजली कैसे पड़ा पढ़े कहानी


 


  माना जाता है कि हर गाँव के नाम के पीछे एक कहानी होती है और उस कहानी में गाँव का नामकरण होता है ।

अर्थात कहानी ही ओ फिल्म है जिसे हम पढ़कर समझ सकते है जैसे एक उदाहरण ले लेते है - छत्तीसगढ़ का नाम छत्तीसगढ़ कैसे पड़ा ।

कहा जाता कि छत्तीसगढ़ राज्य दो प्रधान भागों में विभाजित था पहला शिवनाथ के उत्तर में  'रतन पुर राज ,   और दुसरा दक्षिण में  'रायपुर राज,  प्रत्येक राज के   अठारह अठारह  गढ़    थे अर्थात दोनों राज के गढ़ को   जोड़े    तो | 18+18 = 36 गढ़   बनता  है ( गढ़ मतलब राजा का स्थान होता है )


अब आते हैं बिजली गाँव की कहानी पर -
               bijli fingeshwar


छत्तीसगढ़ , जिला गरियाबंद के वि. खं. फिंगेश्वर का एक गाँव बिजली जो सुनने मे अटपटा और आश्चर्य है ।  यदि बाहरी लोगों को इस गाँव का नाम बताते हैं तो सुनने वाला व्यक्ति आश्चर्य हो जाता है और कहता है क्या ! बिजली ऐ कोन सी नाम हुई । तो  यह गाँव , बिजली नाम से  ही आश्चर्य , रोचक , और  रहस्यमयी कहानी बताता है पढ़ें पुरी कहानी -


इस गाँव में पहले तीस से चालीस घर थे बाकी पुरा घनघोर जंगल इस गांव का इतिहास कहता है कि पानी के लिए न तो यहाँ बोर थे और  न ही   तालाब, कुंआ , लोग नदियों से पानी लाकर अपना प्यास बुझाते थे । क्योंकि नदियाँ गाँव के ही तट पर है । इतनी   दैन्य स्थिती था ।

 जंगल के पैडगरी रोड से लोग राजा के घर काम करने  जाते थे क्योंकि उस समय खेत जमीन सब राजा का था,


इस गाँव का ऐतिहासिक नाम  '" बिजली का गोला '' है 
 घने जंगलों से प्रफुल्ल इस गाँव मे आस पास गाँव के लोग लकड़ी और महुआ के लिए आते थे प्रायः इस जंगल में महुआ और तेंदु का पेड़ अधिक था , 



कहा जाता है की जंगल क्षेत्र में बरसात का पानी बिजली के तड़ाको के साथ अधिक गिरता है, उसी बरसात के काली अंधेरी रात को  जोरदार गरजना के साथ महुआ के पेड़ पर बिजली का गोला गिरा था । जिसे गाज कहते हैं, 

 तब उस  बिजली के गोले से महुआ का पेड़ बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया जब गाँव के लोग सुबह शौच के लिए जंगल गए तो देखा की वह महुआ का पेड़ खतारनाक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया है, तब ग्यात हुआ कि यहाँ कल रात्रि  बिजली का गोला गिरा होगा । 

और यह बात आस पास के गाँव में फैल गई , इस प्रकार की घटना इस क्षेत्र में पहली बार हुआ था  तो जब भी  आस पास के गाँव  के लोग जंगल आते थे तो बिजली का गोला वाले जंगल कहते थे । 

  इस तरह से कई दिनों तक बिजली का गोला नाम चलता रहा जैसे जैसे गाँव की जनसंख्या बड़ताी गयी  वैसे वैसे जंगल कटता गया और साथ ही साथ " का गोला " नाम  शब्द लोगों के दिमाग से कटता गया और लोग शार्ट में बिजली शब्द को बोलने लगे तब से आज तक बिजली नाम चल रहा है |

यह गाँव बहुत ही शांत और भक्ति भाव से परिपूर्ण है । इस गाँव में गाँव की कुल देवी शीतला, मौली , विराजित है ।

गाँव के कुल देवी शीतला माता की मंदिर -






village - Bijali.  Block - fingeshwar.
tahshil - rajim. Dist - gariyaband. State - Chhattishgadh 

बिलाई माता के उत्पत्ति की अत्भुत कहानी धमतरी





छत्तीसगढ़ की जिला धमतरी शहर में माँ बिलाई माता का
 मंदिर स्थित है । इन्हें माॅ विंध्यवासिनी भी कहा जाता है ।





जिस जगह अभी बिलाई माता का मंदिर स्थित है । वह जगह पहले घनघोर जंगलो से प्रफुल्ल था । एक दिन इसी जंगल मे राजा अपने घोड़े मे सवार होकर दल बल के साथ भ्रमण के लिए निकले

जंगल भ्रमण के दौरान राजा के घोड़े को रास्ते मे जंगली  काली बिल्लियों का झुंड बैठे हुए दिखा तो वह घोड़ा घबरा कर अपने स्थान खड़े हो गए ।


तब राजा अपने सेना को आदेश दिया कि जाओ देखो वह जंगली बिल्लीयों का झुंड किन चीजों को घेर कर बैठे हुए है ।
तब सेना ने अपने राजा के आदेश का पालन करते हुए उन सभी बिल्लियों को भगाकर देखा तो उस स्थान पर काले रंग का पत्थर दिखाई दिया जो जमीन के अंदर गड़ा हुआ और थोड़ा बाहर निकला हुआ था ।


तुरंत सेना ने राजा को काले पत्थर देखे जाने की जानकारी दी
यह बात सुनते ही राजा ने उस पत्थर को सुरक्षित निकालने का आदेश दिया ।


और उस पत्थर को निकालने की खुदाई भी जारी हो गई ।      परंतु पत्थर निकालने की प्रक्रिया असफल रहा.क्योंकि ज्यों ज्यों खुदाई करते थे वहां वहां जल की धारा निकल आति थी ।


तब राजा , सेना सभी थक हार कर खुदाई कार्य को स्थगित किया और घर के लिए प्रस्थान कर गये ।

उसी रात राजा को देवी का स्वप्न दर्शन हुआ और देवी ने कहा कि मुझे उस स्थान से निकालना व्यर्थ है । अतः उसी स्थान पर पुजा अर्चना की जाए । राजा ने दूसरे दिन ही उसी  स्थान पर देवी की स्थापना करवा दी ।



देवी माँ का प्रतिमा मंदिर के ठीक दरवाजे से तिरछा  क्यों है जानिए रहस्य -

जब कालांतर मे मंदिर बनाया गया, तब देवी प्रतिमा मंदिर के ठीक दरवाजे के सामने सीधा था । परन्तु कुछ वर्षो बाद देवी प्रतिमा थोड़ी थोड़ी तिरछा बड़ताी गयी । जो आज भी वैसे का वैसे तिरछा है । ये सब देवी माँ की लिला हो सकता है ।


इस देवी माँ को  " बिलाई माता " क्यों कहा गया जानिए  -

पुरा कहानी स्पष्ट कर रहा है कि घने जंगलो मे काली बिल्लियों का पुरा झुंड देवी पत्थर की रखवारी कर रहा है । तो हो सकता की इन्हीं काली बिल्लियों के रखवारी से देवी माँ का नाम बिलाई माता रखा गया हो ।
छत्तीसगढ़ही भाषा मे बिल्लियों को बिलाई बोलते है ।


प्रतिवर्ष शरदीय नवरात्र मे बिलाई माता के दरबार मे मेला जैसा माहौल रहेता है । पुरा धमतरी बिलाई माता के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है ।

तो आप भक्त भी माँ के दरबार मे आईए और अपना हाजरी दिलाईए


 卐   जय मां विंध्यवासिनी बिलाई माता धमतरी  卐


ॐ   Jai Ma Vindhyavasinee Bilai Mata ॐ  
                               Dhamtari 













सतयुग से है बाबा कुटी आश्रम फिंगेश्वर ( baba kuti ashram fingeshwar gariyaband)


छत्तीसगढ़ , जिला गरियाबंद के वि.खं. फिंगेश्वर से करीब             एक कि. मी  के दुरी पर माण्डव्य ऋषि आश्रम है जो बाबा कुटी आश्रम के नाम से प्रचलित है ।


यह आश्रम राजिम - फिंगेश्वर मुख्य मार्ग रोड के जस्ट टर्निंग पुरेना मोड़ के घने जंगल मे है । इसी जंगल मे सतयुग के बाबा माण्डव्य ऋषि ने तपस्या की थी । यहां बाबा कि कुटिया, यज्ञ शाला आज भी मौजूद है ।

ऐतिहासिक मान्यता -

मान्यता है कि भगवान राम अपने वनवास के दौरान फिंगेश्वर के फनिकेश्वर महादेव की पुजा अर्चना करके राजिम के लिए प्रस्थान किया था । इसी बीच बाबा कुटी आश्रम में विश्राम करके माण्डव्य ऋषि से आगे राजिम जाने का रास्ता पुछा था ।

इसीलिए यहां राम जानकी का मंदिर स्थापित किया गया है । इस आश्रम मे ऐतिहासिक शिवलिंग का मंदिर भी है , सावन के  महीने में कांवरिया  भोले के मंदिर मे जल चड़हाने आते है । और तो और सावन के सोमवार को भक्तों की भीड़ अच्छी खाशी देखने को मिलती है ।

यह बाबा कुटी आश्रम , छत्तीसगढ़ के पर्यटन माँ घटारानी मार्ग पर पड़ता है । तो शैलानी यहाँ आते जाते रहते हैं ,
जंगलो से प्रफुल्ल इस आश्रम मे शैलानी सेल्फी लेकर आश्रम को यादगार बनाते है ।

 





Chandi Mata | चंडी माता मंदिर बागबाहरा में प्रति रोज आते है भालू


छत्तीसगढ़ का यह चंडी मंदिर महासमुंद जिले के घुंचापाली गाँव में स्थित है । पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का इतिहास तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना है । गाँव वाले कहते हैं कि यह चंडी मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था ।

यहां कई साधु संतो का डेरा था ,  लेकिन अब यह मंदिर आम जनता के लिए है । घुंचापाली चंडी माता का मंदिर बागबाहरा के घने जंगलो के पहाड़ी पर स्थित है ।

 यह जंगल बहुत ही खुंखार जानवरों से भरा पड़ा है । इसी जंगल से खुंखार जानवर भालु का परिवार चंडी माता के मंदिर मे प्रति रोज प्रसाद खाने आते  हैं । जैसे ही शाम को चंडी माता की पुजा आरती का समय होता है ,और भालु का परिवार जंगल से दौड़े चले आते है ।

भालु के इस क्रिया को देखने के लिए लोग दुर - दुर से आते हैं । भालु और चंडी मां का यह चमत्कारी क्रिया टीवी मीडिया और अखबारों का हेडलाईन बन गया है । रोज किसी न किसी अखबारों और टीवी पर प्रशारित किया जा रहा है ।
 भालु का किसी शैलानी पर हमला न करना , प्रति शाम पुजा आरती के समय बिन बुलाए भालु का आ जाना यह सब पुरी क्रिया चंडी माता का चमत्कारी लीला नहीं तो और क्या है ।

भालु खुद अपने हांथो से माता पर चढ़े प्रसाद खाते हैं

छत्तीसगढ़ से दूर भारत के अन्य राज्यों से भी शैलानी चंडी माता के दर्शन के लिए आते है ।
प्रति साल चैत्र नवरात्रि और कुवार नवरात्रि मे भक्त माता के दरबार मे मनोकामना ज्योति जलाते हैं ।



भक्त कर्मा माता मंदिर बाबा कुटी आश्रम फिंगेश्वर (baba kuti ashram fingeshwar)




साहू समाज परीक्षेत्र बोरसी के सर्वसम्मति से माण्डव्य ऋषि आश्रम पर ,भक्त कर्मा माता की भव्य मंदिर बनाया गया है । यह मंदिर इक्कीसवीं सदी के अठारहवें साल मे स्थापित किया गया है.


माण्डव्य ऋषि आश्रम का प्रचलित नाम बाब कुटी आश्रम है यह आश्रम छत्तीसगढ़ जिला गरियाबंद के वि.खंड फिंगेश्वर से तकरीबन एक किलोमीटर के दुरी पर स्थित हैं ।


भक्त कर्मा माता तेली जाती का आराध्य देवी है । साहू समाज कर्मा माता के पुजा आरती करके ही सामाजिक कार्य प्रणाली सुरू करते हैं । कर्मा माता की कहानी बहुत ही धार्मिक है । मान्यता है कि कर्मा माता मीरा की तरह कृष्ण भगवान के भक्त थी ।

कर्मा माता की जीवन गाथा -

माँ कर्मा बाई का जन्म उत्तर प्रदेश के झाँसी नगर मे  चैत्र कृष्ण पक्ष को सुप्रसिद्ध तेल व्यापारी श्री राम साहू के घर हुआ था । तेल व्यापारी राम साहू के दो पुत्री थी कर्मा बाई और धर्मा बाई , समय के अनुसार कर्मा बाई की विवाह मध्यप्रदेश के जिला शिवपुरी की तहसील मुख्यालय नरवर  के निवासी पा जी साहू के साथ  हुआ था ।

कर्मा बाई का पति तेल के व्यापार करते थे । माॅ कर्मा निरन्तर बाल कृष्ण के भक्ति मे रमा रहता था । क्योंकि माँ कर्मा के पिता बहुत ही भक्ति भाव वाले थे  । तो इन्हीं के संस्कार कर्मा माता को मीला था । एक दिन अचानक कर्मा बाई के पति का अस्वस्थता के कारण निधन हो गया ।


 पति के चिता के सांथ सति होने का संकल्प कर लिया तभी आकाशवाणी  हुई  । कि यह ठीक नहीं है , बेटी तुम्हारे गर्भ में बच्चा पल रहा है । तुम समय का इंतजार करो मैं तुम्हें जगन्नाथ पूरी में दर्शन दूंगा और समय के चलते गर्भ मे पल रहे बच्चे का जन्म भी हो गया ।

आकाशवाणी से कहे गए शब्द पर कर्मा बाई गध्यान मन लगाते थे कि कब मेरे प्रभु मुझे दर्शन देंगे और इस तरह सोचते सोचते जगन्नाथ पूरी के लिए निकल गए थक हार कर रास्ते मे बेहोश हो गई जब होश आए तो वह जगन्नाथ पूरी मे थे ।

घर से बानाकर लाई गयी खिचड़ी भगवान को भोग लगाने के लिए मंदिर की सिड़ही चड़ने लगी जैसे ही सिड़ही पूर्ण की मंदिर के पुजारी लोग कर्मा माता पर भड़क गए तब कर्मा माता बोली पुजारी जी मैं भगवान को खिचड़ी का भोग लगाना चाहती हूँ ।

गुस्सा से आग बबुल पंडित जी ने कर्मा माता को सिड़ही से निचे धकेल दी कि भगवान तुम्हारे हाथ खिचड़ी खाऐंगे भाग यहाँ से पगली, तब कर्मा माता बहुत ही पीड़ा से कहने लगी वाह प्रभु क्या तुम पंडित पुजारियों के कैद में हो । मैं भी यहां से तब तक नहीं जाऊँगा जब तक तुम खूद मेरा बनाया खिचड़ी नहीं खा लो गे भले ही मेरा प्राण क्यों न चला जाये


अपार श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न भगवान श्री कृष्ण अपना बालकृष्ण रूप धारण कर कर्मा माता की गोद मे बैठकर माता के हाथों से खिचड़ी खाया । तब से आज तक जगन्नाथ पूरी मे खिचड़ी का भोग लगता है ।